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Bharatiya beti ke sapne

नमक खाया जिस देश का अब उसके लिए सपने सजाना चाहती हूं इस जननी मातृभूमि का कर्ज आखिर मैं भी चुकाना चाहती हूं। खेल लिया, कूद लिया लिपटकर इसके सो लिया अब इस धरा पर उद्योग मैं विकसित करना चाहती हूं।

poem by Akshara Doshi
Bharatiya beti ke sapne