सर्वत्र पराधीनता के शोषण का था रव
चिंगारी था 1857 का विप्लव ।
गाँधी का भारत आगमन,
फिर सविनय अवज्ञा और असहयोग से
प्रशासनिक व्यवस्था का दमन ।
शहीद-ए-आज़म भगत सिंग का बलिदान
अंत में ‘भारत छोड़ो आंदोलन" से,
शोषितों का आह्वान ।
हिंसात्मक - अहिंसात्मक दोनों पक्षों का था योगदान
अन्ततः फलीभूत हुआ स्वाधीनता सेनानियों
का सर्वोच्च बलिदान ।
परतंत्रता के बंधन से मुक्ति की चिर-प्रतीक्षित रात्रि,
जनसमूह के हृदयों को शीतल कर रही थी मूसलाधार वृष्टि ।
तिरंगे से हुआ ब्रितानी ध्वज का प्रतिस्थापन
हर्ष के अश्रुओं से हुआ स्वतंत्र भारत की
प्रथम प्रभात का स्वागत ।