poem

Bharatiya beti ke sapne

Akshara Doshi Akshara Doshi June 23, 2023 | 2 minutes
  Link copied successfully.
Bharatiya beti ke sapne

नमक खाया जिस देश का अब उसके लिए सपने सजाना चाहती हूं
इस जननी मातृभूमि का कर्ज
आखिर मैं भी चुकाना चाहती हूं।

खेल लिया, कूद लिया
लिपटकर इसके सो लिया
अब इस धरा पर उद्योग
मैं विकसित करना चाहती हूं।
इस जननी…..

थामा हैं, बांधा हैं
मेरी योग्यता को आगे निखारा हैं
अब मैं भी इस योग्यता को सबको दिखाना चाहती हूं।
इस जननी….

बड़ना हैं, कभी नहीं थकना हैं
दौड़ते मुझे रहना हैं
मैदान में कूदकर मैं
वापस नही आना चाहती हूं
इस जननी…

कमाना हैं, फिर बचाना हैं
मितव्ययी खुद बनकर, सभी को बनाना हैं
ऐसा कर देश की उन्नति के लिए
पैसे मैं भी देना चाहती हूं।
इस जननी….

खिलाना हैं, पिलाना हैं
अरे भाई! भूकमारी मिटाना हैं
संस्थाएं अनेकों खोलकर
मैं भोजन दिलाना चाहती हूं।
इस जननी…..

लूट लिया, ठग लिया
ऐसे ही कितनो को कंगाल इन्ने कर दिया
इसके लिए इस क्रोध की ज्वाला में
भ्रष्टाचार को डुबाना चाहती हूं।
इस जननी….

जानती हु इसके लिए
मुझे राजनीति जैसे दलदल में कूदना होगा
आखिर अभी एक बीज हूं
निखरने के लिए अंधकार भरी मिट्टी में दबना होगा
लेकिन निकलकर जब सूरज की किरणों को चूमकर आऊंगी
तब शान से यह देश कहेगा
बेटा ही नहीं अरे बेटा ही नहीं
बेटी भी सबकुछ कर दिखलाएगी
अपनी जननी मातृभूमि का कर्ज बेटी भी चुकाकर दिखाएगी।
धन्यवाद!

Akshara Doshi
by Akshara Doshi
Akshara is a 2021 batch student of Government Medical College, Ratlam

Send your comments about this post to gmcrmagazine@gmail.com